
महर्षि दयानन्द सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 में टंकारा, गुजरात में हुआ। उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की और “स्वराज्य” का पहले नैरा दिए, जिसे बाद में “लोकमान्य तिलक” ने आगे बढ़ाया। उन्होंने समाज सुधर के अनेक कार्य किये, वे स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और धर्म-गुरु थे। महर्षि जी की मृत्यु 30 अक्टूबर, 1883 में अजमेर, राजस्थान में हुई।
- किसी भी नुकसान से निपटने से पहले उससे मिले सबक को न भूलना ही आपको असली विजेता बनाता है।
- इंसान की आवाज़ ही उसका सबसे बड़ा संगीत यन्त्र है।
- जब आप दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ देंगे तो आपके पास लौटकर सर्वश्रेष्ठ ही आएगा।
- जब मूल्य का मूल्य स्वयं के लिए मूल्यवान हो तभी कोई मूल्य मूल्यवान होता है।
- ऐसे व्यक्ति की मदद करना जो आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो वही सबसे उच्च कोटि की सेवा है।
- आप दूसरों से अपने लिए बदलने की आशा करते हैं ताकि आप आज़ाद रहें, इसके बदले आप दूसरों को ही स्वीकार करने की कोशिश करिये और आज़ाद रहिये।
- सबसे अधिक योगदान देने वाला व्यक्ति ही सबसे कम ग्रहण करता है।
- व्यक्ति के मर्म का आह्वान करने में गीत बहुत मदद करता है, और बिना इसके व्यक्ति के मर्म को छूना कठिन है।
- दुनिया में ऐसी कोई कृपा नहीं जो कमाई न गयी हो, हमें पता होना चाहिए कि भाग्य भी कमाया जाता है।
- आप भावनात्मक रूप से अधिक समय तक दुनिया के आगे खड़े नहीं रह सकते अगर आप पर हमेशा ऊँगली उठाई जाती रहे।
- मैंने दूसरों को उनके भले के लिए सत्य से प्रेम और झूठ का त्याग करने के लिए राजी करना ही मेरा कर्त्तव्य है। मुझे सत्य का पालन करना ही पसंद है।
- कोई भी धर्म किसी मानव को सीखा पढ़ा कर उसकी सहानुभूति से वंचित नहीं कर सकता, ये सहानुभूति है इसलिए इसे कोई संस्कृति, कोई राष्ट्र, कोई राष्ट्रवाद उसे छू नहीं सकता।
- किसी छात्र के ज्ञान अर्जन में उसके प्रति प्रेम, निर्देशों का पालन, ज्ञानी और अच्छे व्यक्ति के प्रति सम्मान, गुरु की पुरे मन से सेवा और उनके आदेशों के पालन में उसकी योग्यता होती है।
- जिन्हे देखभाल की जरूरत है उसके बाद भी मनुष्य उस तक नहीं पहुँचता तो उसके अंदर संवेदना होते हुए वह प्राकृतिक व्यवस्था का उल्लंघन है।
- प्रार्थना एक क्रिया है इसलिए इसका परिणाम भी होगा और यह किसी भी रूप में प्रभावी है।
- मानसिक अंधकार का फैलना मूर्ति पूजा के प्रचलन से ही हुआ है, लोगों को कभी भी चित्र की पूजा नहीं करनी चाहिए।
- दुनिया में हर कोई जनता है मृत्यु को टाला नहीं जा सकता लेकिन हर कोई इसे अंदर से मानता नहीं – ये मेरे साथ नहीं होगा इसी कारण मनुष्य को इसे कठिन चुनौती के रूप में सामना करना पड़ता है।
- जैसे ईश्वर पूर्ण रूप से पवित्र है उसी तरह उसकी प्रकृति, गुण और शक्तियां भी पवित्र हैं।
- जो हमेशा सच बोलता है, धर्म के अनुसार चलता है, काम करता है और दूसरों को उत्तम और प्रसन्न करने की कोशिश में रहता है वही अच्छा और बुद्धिमान है।
- ईश्वर सर्शक्तिमान, सर्वव्यापी, निराकार, अजन्मा, दयालु, सर्वज्ञ,अपार और न्याय करने वाले हैं , वह दुनिया के रचकर, रक्षक और तारणहार हैं।
- अन्धविश्वास से पूर्ण भरोसे से अधिक महत्त्व वर्तमान जीवन का कार्य है।
- किसी काम की पुनरावृत्ति और औपचारिकता किसी काम का नहीं इसलिए, मनुष्य को भगवान् को जानना और उनके कार्यों की नक़ल करनी चाहिए।
- अज्ञानी बने रहना गलत है, अज्ञानी होना गलत नहीं।
- मोक्ष ईश्वर की अपारता में स्वतंत्रता और प्रसन्नता का जीवन है। मोक्ष जन्म-मरण और दुःख की अधीनता से मुक्ति का नाम है।
- जो ईमानदारी और न्याय से कमाई जाये वह धन है और इसके ठीक विपरीत है अधर्म का खजाना।
- सीधा और सरल सुख सद्गुणों और सही तरीके से कमाए गए धन से मिलता है।
- जो बात ह्रदय में है उसे व्यक्त करने के लिए ही जिव्हा को होना चाहिए।उपकार बुराई का अंत करके सदाचार का प्रारम्भ करता है, लोककल्याण और सभ्यता के विकास में योगदान करता है।
- ईश्वर अविनाशी है, अपर है, सर्वव्यापी है जिनका ना कोई रूप है ना कोई रंग, दुनिया में जो कुछ दिखता है वह सिर्फ उनकी महानता का बखान करता है।
- आत्मा का अस्तित्व कई है लेकिन स्वरुप में सिर्फ एक है।
- मानव जीवन में दुःख का मूल कारण तृष्णा और लालच है।
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