कमरछठ(हलषष्ठी) संतान की सुख-समृद्धि के लिए व्रत

भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को कमरछठ (हल षष्ठी) का व्रत माताएं अपने संतान की सुख-समृद्धि और लम्बी आयु के लिए रखतीं है|इसे अलग अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नाम से जाना और रखा जाता है| हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लेखित एक प्रमुख व्रत है जो मथुरमंडल और भारत के समस्त बलदेव मंदिरों में भगवन श्री कृष्णा के बड़े भाई तथा ब्रज के राजा हलधर बलराम के जन्मोत्सव के अवसर पर रखा जाता है|इस दिन गाय का दूध और दही का सेवन वर्जित होता है, यह जन्माष्टमी के दो दिन पहले आता है|इसमें व्रत का भी विधान है जिसमे व्रत रखकर भगवान शिव-पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी और सिंह की पूजा करके हल षष्ठी व्रत के छह कथाओं को सुनकर आरती आदि करके पूजन का कार्य संपन्न किया जाता है|
इस दिन महिलाओं को ऐसे स्थान में जाना मना होता है जहाँ हल से काम किया जाता हो, मतलब इस दिन खेत, फार्म हाउस यहाँ तक की अगर घर के बगीचे में यदि हल का काम होता हो तो वहां भी जाना वर्जित होता है|इस दिन महिलाओं को टूथ-ब्रश और पेस्ट की बजाये खम्हार वृक्ष के लकड़ी के दातुन करती हैं, यह ग्रामीण अंचल में पाया जाने वाले वृक्ष की एक प्रजाति है|यह व्रत समूहिजक रुप से महिलाओं द्वारा मिल कर किया है|इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जान हुआ था और उन्होंने हल को अपने कंधे में धारण किया, इसी वजह से इस व्रत और पूजा के लिए हल से उपजे अन्न का उपयोग नहीं किया जाता|
पूजा सामग्री:-
लाई, पसहर चावल, महुआ का सूखा फल, झरबेरी, कांसी का फुल, चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का तथा मूंग आदि|
व्रत व पूजा विधि:-
भाद्रपद मॉस की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को रखा जाने वाला यह व्रत बड़े ही भक्ति भाव से व्रत रख कर भगवान शिव-पार्वती की पूजा करके की जाती है, इसके लिए विशेष नियम होते हैं जिनका विशेष ध्यान रख कर व्रत और पूजन कार्य किया जाता है|इसकी विधि इस प्रकार है:-
- इस दिन सबसे पहले ब्रम्ह मुहूर्त में उठ कर खम्हार वृक्ष के डाल से दातुन करने के पश्चात् स्नान आदि से निवृत्त हो जाना चाहिए|
- इसके बाद सभी महिलाएं एक स्थान पर एकत्रित हो जाती हैं, फिर वहां पर गोबर से स्थान को लिप कर स्वच्छ कर लिया जाता है, और एक गड्डा खोद कर सगरी का निर्माण किया है|
- इसके बाद इस सगरी को गोबर से लिप कर झरबेरी बेर के के छोटे तने, पलाश इत्यादि चीजों से सजाया जाता है, तथा बेल पत्र, भैंस का दूध, कैसी के फूल, सिंगार का सामान, लाई और महुए का सूखा फल चढ़ाया जाता है|
- महिलाएं अपने-अपने घरों से मिटटी के बने शिवलिंग, नंदी, गौरी-गणेश और खिलौने बना कर लातीं है जिन्हे सगरी के चारों तरफ पूजन कार्य के लिए रखा जाता है|
- इस तालाब में झरबेरी, ताश तथा पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई ‘हरछठ’ को गाड़ दें और कच्चे जनेउ का सूत हरछठ को पहनाते हैं|
- इसके पश्चात हलषष्ठी व्रत की छह कथाएं एक जगह बैठ कर ध्यान पूर्वक व भक्ति भाव से सुनते हैं|
- इसके बाद भगवान शिव-पार्वती तथा षष्ठी माई की आरती करने के पश्चात यह पूजा संपन्न हो जाती है|
- इसके पश्चात माताएं नए कपडे के टुकड़े को सगरी के जल में डूबा कर घर ले जाती हैं और अपने बच्चों के पीठ पर छह बार स्पर्श करवाती हैं, इसे “पोती” मरना कहते हैं|
- पूजन के पश्चात बचे हुए लाई, महुए के सूखे फल व नारियल को महिलाएं एक-दूसरे को बाँटती हैं और फिर अपने घर ले जातीं हैं|
- घर पहुँचने के पश्चात् महिलाये फलाहार की तैयारी करतीं हैं| फलाहार में पशर चावल को भगोने में बनाया जाता है, इसमें खोने व निकालने के लिए चम्मच का उपयोग वर्जित होता है, इसलिए खम्हार की लकड़ी का उपयोग किया जाता है|
- इसके बाद छह प्रकार के भाजियां हैं उसे काली मिर्च और पानी में पकाया जाता है, और भैंस के घी का उपयोग करके छौंका लगा कर बनाया जाता है|
- इस प्रकार बने भोजन और भाजी को सर्व्रथम छह प्रकार के जीवों जैसे बिल्ली, गाय, भैंस, पक्षी, कुत्ते और चीटियों के लिए खम्हार वृक्ष के पत्तों में परोसा जाता है|
- इसके पश्चात् महिलाएं स्वयं फलाहार करती हैं और घर के बाकी सदस्यों को भी प्रसाद स्वरुप पशर चावल, भाजी खाने के लिए देतीं हैं|
व्रत के लिए आवश्यक बातें :-
इस व्रत में समय का उचित ध्यान रखना जरुरी होता है और फलाहार सूर्यास्त से पहले करना आवश्यक होता है|इस प्रकार विधि पूर्वक कमरछठ का व्रत करने से जो संतानहीन हैं, उनको दीर्घायु और श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है, और जिनकी संताने हैं उनके आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है|
धर्माचार्यों औरविद्वानों के अनुसार सबसे पहले द्वापर युग में माता देवकी द्वारा कमरछठ व्रत किया गया था क्योंकि खुद को बचाने के लिए मथुरा का राजा कंस उनकी सभी संतानों का वध करता जा रहा था। उसे देखते हुए देवर्षि नारद ने हल षष्ठी का व्रत करने की सलाह माता देवकी को दी थी। उनके द्वारा किए गए व्रत के प्रभाव से ही बलदाऊ और भगवान कृष्ण कंस पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए थे। उसके बाद से यह व्रत हर माता अपनी संतान की खुशहाली और सुख-शांति की कामना के लिए करती है। इस व्रत को करने से संतान को सुखी व सुदीर्घ जीवन प्राप्त होता है। कमरछठ पर रखे जाने वाले व्रत में माताएं विशेष तौर पर पसहर चावल का उपयोग करती हैं।
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Updated: 28.08.2021