A Life Story Of The Flying Sikh Milkha Singh | उड़न सिख मिल्खा सिंह की जीवनी

उड़न सिख मिल्खा सिंह की जीवनी / Life Introduction Of Milkha Singh

Friends, all of you must have heared the name of Udan Sikh, if not, then let us know about the life story of Flying Sikh Milkha Singh.

दोस्तों आज हम इस पोस्ट में भारत के एक ऐसे आदमी के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने भारत को कॉमनवेल्थ खेलों में सबसे पहले स्वर्ण पदक दिलाने वाले भारतीय बने। जिन्होंने 1960 के रोम ओलम्पिक में पूर्व ओलम्पिक रिकॉर्ड तो तोड़कर नया कीर्तिमान रच दिया था जो लगभग 40 सालों तक रिकॉर्ड रहा, जिन्हे “उड़न सिख” के नाम से भी जाना जाता है।

जी, अब आप सबको अब यह अंदाजा हो ही गया होगा कि हम किसकी बात करने जा रहे हैं।

अगर आप उड़न सिख के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह के बारे में सोच रहे हैं तो आप एकदम सही है। उन्होंने देश विभाजन के बाद बहुत संघर्ष किया और वो इस संघर्ष से इतने निखरे की दुनिया देखती रह गई। दोस्तों जीवन में संघर्ष इसलिए ही आते हैं कि हम सब उसका सामना करते हुए आगे बढ़ते हुए और मजबूत बने।

प्रारम्भिक जीवन और विभाजन के बाद संघर्ष:

हमारे देश के “उड़न सिख” के नाम से मशहूर “धावक मिल्खा सिंह” का जन्म  20 नवम्बर, 1929 में अविभाजित भारत के पंजाब प्रान्त के गोविंदपुरा में एक सिख राठौर परिवार में हुआ। मिल्खा सिंह अपने माँ-बाप के 15 बच्चों में से एक थे। जिनमे से कई भाई और बहन बचपन में ही गुजर गए। उसके पश्चात् जब 15 अगस्त, 1947 में भारत विभाजन हुआ तब उन्होंने माँ-बाप और भाई-बहन को भी खो दिया।

इसके बाद वे शरणार्थी बनकर ट्रेन से पाकिस्तान छोड़ दिल्ली आ गए। दिल्ली आकर वे अपनी एक शादीशुदा बहन के घर पर रहने लगे, कुछ दिन अपनी बहन के यहाँ रहने के बाद वे दिल्ली के शाहदरा इलाके के पुनर्स्थापित बस्ती में रहने आ गए।

देश के विभाजन के समय उन्होंने अपने माता-पिता को खोने के इतने दुःख के बाद उनके मन को बहुत गहरा आघात लगा। विभाजन के समय खाने के लाले पड़े थे कई बार खाने मिलता और कई बार भूखे ही रहना पड़ता। अपने एक भाई के कहने पर सेना में भर्ती होने तैयार हुए और भर्ती हो  गए। उस समय सेना में खिलाडियों को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया था।

मिल्खा सिंह का एथेलेटिक्स जीवन का आरम्भ / Milkha Singh’s Beginning in Athletics Life

एक बार उन्होंने सेना के 05 मील के दौड़ की प्रतियोगिता में भाग लिया और द्वितीय स्थान पर रहे इसके बाद उनके प्रशिक्षक ने उन्हें छोटे फैसले के दौड़ की तयारी करने का सुझाव दिया।

इसे भी पढ़ें:- भारतीय क्रांति के जनक बाल गंगाधर तिलक

इसके बाद उन्होंने 200 और 400 मीटर की दौड़ के लिए कड़ी मेहनत करने लगे। इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत करते हुए भारत के सबसे सफलतम धावक बन गए। उस समय सेना में नौकरी करते हुए वे 400 मीटर की दौड़ 01.30 मिनट में पूरी करते थे लेकिन भारतीय रिकॉर्ड सिर्फ 48 सेकंड का था। और तभी उन्होंने इसके लिए जी जान से भीड़ गए और उन्होंने 400 मीटर के रेस 47.9 सेकंड में पूरा कर  भारतीय रिकॉर्ड को ध्वस्त कर नया रिकॉर्ड बन दिया।

मिल्खा सिंह मेलबोर्न ओलम्पिक 1956 में / Milkha Singh at Melbourne Olympics 1956

 इसके बाद उन्हें 1956 के मेलबोर्न ओलम्पिक में जाने का मौका मिल गया। यहाँ उन्होंने 48.9 सेकंड में 400 मीटर की दौड़ को पूरा किया जो रिकॉर्ड से बहुत पीछे था, जिसके बाद 400 मीटर के विश्वर रिकॉर्डधारी अमेरिका के जैकिंस ने उन्हें आवश्यक सुझाव दिया। जैकिंस के सुझाव के बाद उन्होंने उनके अनुसार ही अभ्यास करना शुरू किया और 1957 के राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में 47.05 सेकंड में 400 मीटर की दौड़ पूरी कर नया रिकॉर्ड बनाया।

मिल्खा सिंह ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेल 1958 में / Milkha Singh in the British Commonwealth Games 1958

इसके बाद 1958में ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेल में 400 मीटर में उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल करते हुए राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक  जितने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाडी बन गए।

मिल्खा सिंह रोम ओलम्पिक 1960 मेंMilkha Singh in Rome Olympics 1960

मिल्खा सिंह ने रोम ओलम्पिक 1960 में  उन्होंने शानदार प्रतिनिधित्व किया। सन 1960 में में पदक पाने से चूक गए और चौथे स्थान पर रहे इस बात के उनके मन को झकझोर कर रख दिया और उन्होंने इससे सन्यास लेने का फैसला कर लिया। 1960 के ओलम्पिक में उन्होंने दौड़ते समय अपने प्रतिद्वंदियों को पीछे मुद कर देखने लगे जिसका खामियाजा उनको भुगतना पड़ा और वे कुछ ही सेकंड से जितने से चूक गए और उन्हें कांस्य पदक भी न मिल पाया, जिसका पछतावा उन्हें आज भी है।

इसे भी पढ़ें:- अजीम प्रेमजी परोपकार के नायक

मिल्खा सिंह एशियाई खेल 1962 मेंMilkha Singh In the Asian Games 1962

इसके बाद उन्होंने वापसी करते हुए 1962 में जकार्ता में हुए एशियाई खेल में 400 मीटर में रिले रेस में स्वर्ण पदक जीत कर भारत का शानदार प्रतिनिधित्व किया। मिल्खा सिंह ने 1964 में टोक्यो में हुए भाग लिया लेकिन टीम फाइनल में जगह बनाने में असफल रही।

खेल के बाद मिल्खा सिंह का जीवन / Milkha Singh’s life after Sports

मिल्खा सिंह को एशियाई खेलों में सफलता के बाद उन्हें सेना में “जूनियर कमीशंड अफसर” में पद पर पदोन्नत करते हुए सम्मानित किया गया। उसके बाद उन्हें पंजाब सरकार द्वारा शिक्षा विभाग में “खेल निर्देशक” के पद पर नियुक्ति भी मिली।

मिल्खा सिंह की पाकिस्तान 1958 की यादगार दौड़ / Milkha Singh’s Memorable Race of Pakistan 1958

सन 1958 में मिल्खा सिंह को पाकिस्तान में एक दौड़ प्रतियोगीयता में भाग लेने का आदेश आया। लेकिन मिल्खा सिंह पाकिस्तान में बचपन में हुए उस हादसे की याद दिला दिया जिसमे उन्होंने अपने माता-पिता को खोया था और उन्होंने इसके लिए पाकिस्तान जाने से मना कर दिया था। तब भारत सरकार के बहुत आग्रह करने के बाद उन्होंने पाकिस्तान जाने का और दौड़ने का फैसला किया। जब मिल्खा सिंह पाकिस्तान में दौड़ना शुरू किये तो उनके सभी प्रतिद्वंदियों के होश ही उड़ गए उन्हें कुछ समझ में ही नहीं आया उस दिन मिल्खा सिंह ऐसे दौड़ रहे थे कि लग रहा था  जैसे वे उड़ रहें हो और मिल्खा सिंह ने बड़ी ही आसानी से यह रेस जीतने में सफल रहे। 

मिल्खा सिंह के उस दिन इस तरह बड़ी आसानी से रेस जीतने के बाद वहां के जनरल अयूब खान ने उन्हें “उड़न सिख” की संज्ञा दी। इसके बाद खेलों से उन्होंने पूरी तरह सन्यास ले लिए और भारत में खेलों के प्रोत्साहन के कार्य करने लगे।और फिर मिल्खा सिंह के इस अतुल्य दौड़ के लिए उन्हें 1958 में “पद्म श्री” से सम्मानित किया गया।

इसे भी पढ़ें:- स्वामी विवेकानंद की जीवनी

मिल्खा सिंह की उपलब्धियां और सम्मान / Milkha Singh’s Achievements and Honors

1956 – भारत का 200 और 400 मीटर के रेस में प्रतिनिधित्व किया लेकिन अंतर्राष्ट्रीय अनुभव ना होने के कारन इसमें वे असफल रहे लेकिन शानदार प्रदर्शन किया।

1957  – 400 मीटर के रेस 47.05 सेकंड में दौड़ रिकॉर्ड बनाया।

1958  – कटक में आयोजित एशियन खेलों में राष्ट्रिय रिकॉर्ड बनाया।

1958  – ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक हासिल कर स्वर्ण पदक जितने वाले भारत के पहले धावक बने।

1958 – खेलों में शानदार प्रदर्शन के लिए उन्हें सेना में “जूनियर कमीशंड अफसर” में पद पर पदोन्नत करते हुए सम्मानित किया गया।

1958  – खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन और विशेष योगदान के लिए उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

1960  – रोम ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

1962  – जकार्ता में एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीत कर भारत का गौरव बढ़ाया।

1964  – टोक्यो ग्रीष्म ओलिंपिक में भारत का प्रदर्शन किया।

मिल्खा सिंह ने “The Race Of My Life” किताब लिखी जो उन्होंने अपनी बेटी सोनिया सांवल्का के साथ मिलकर पूरी की जिसे 2013 में रूपा पब्लिकेशन के द्वारा प्रकाशित किया गया था।

दोस्तों आपको उड़न सिख मिखा सिंह के जीवन पर यह लेख A Biography Of The Flying Sikh Milkha Singh / उड़न सिख मिल्खा सिंह की जीवनी कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं | धन्यवाद्

1 thought on “A Life Story Of The Flying Sikh Milkha Singh | उड़न सिख मिल्खा सिंह की जीवनी”

  1. Pingback: बाल गंगाधर तिलक- भारतीय क्रांति के जनक | A Biography Of A Great Nationalist, A Critic - Nice One Story

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Scroll to Top
Verified by MonsterInsights