दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी, 1929 को बिहार के गया के पास के गहलौर गांव में एक गरीब मजदुर के यहाँ हुआ था। सिर्फ अकेले ही इन्होने एक हथौड़ा और एक छैनी लेकर ही 360 फुट लंबी, 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचें पहाड़ को काट कर एक सड़क बना दिया था, इसलिए उन्हें “माउंटेन मैन” के नाम से भी जाना जाता है। इतने कठिन परिश्रम करने के बाद उनके द्वारा बनायीं सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लॉक जिसकी दुरी 55 किलोमीटर था उसे 15 किलोमीटर कर दिया।
दशरथ मांझी एक बेहद पिछड़े इलाके के आदिवासी जाती के थे। प्रारम्भ में उन्हें अपनी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने, अपने छोटे से छोटा हक़ मांगने के भी बहुत संघर्ष करना पढता था। उनके गांव से पास के एक कसबे में जाने के लिए उन्हें पूरा गहलौर पहाड़ पार करना पड़ता था। उस समय उनके गांव में ना ही बिजली की व्यवस्था थी ना ही पानी की। इसी तरह दूसरे छोटी-छोटी चीजों के लिए उनको और गांव वालो को पूरा पहाड़ चढ़ कर पार करके जाना होता था या फिर पहाड़ का पूरा चक्कर लगा कर जाना पड़ता था। उनकी शादी फाल्गुनी देवी के साथ हुआ।
दृढ़ संकल्प और सकारात्मक सोच की कहानी:-
एक बार जब फाल्गुनी देवी अपने पति दशरथ मांझी के लिए खाना ले जा रही थी उसी समय वो फिसल कर पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। दशरथ मांजी के मन में यह बात खटक रही थी कि अगर फाल्गुनी देवी को अस्पताल ले जाया गया होता तो शायद वो बच जाती और ये बात उन्हें परेशान करने लगी।
तब दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले ही पहाड़ को काट कर बीचो-बीच रास्ता निकालेंगे। फिर उन्होंने 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़े गहलौर कि पहाड़ी को काट कर रास्ता बनाना शुरू किये।
इन्होने के बताया – ” जब मैंने पहाड़ी को तोडना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा लेकिन इसने मेरे निश्चय को और दृढ़ किया। “
इन्होने ने अपने काम को 1960 से 1982 तक 22 वर्षों में पूरा किया। दशरथ मांझी के द्वारा पहाड़ काट कर बनाये गए इस सड़क ने गया के अतरी से वजीरगंज के बीच 55 किलोमीटर को सिर्फ 15 किलोमीटर कर दिया। दशरथ मांझी के सड़क बनाये जाने के प्रयास को बहुत मजाक उड़ाया गया लेकिन उनके प्रयास ने गहलौर के लोगों के जीवन को पहले से कहीं ज्यादा सरल बना दिया।
इन्होने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम अनुसार दंडनीय है फिर भी उनका पहाड़ काटने के संकल्प और कार्य का प्रयास सराहनीय है। बाद में मांझी ने कहा – “पहले-पहले गांव वालों ने मुझपर तने कैसे लेकिन उनमे से कुछ ने मुझे खाना दे कर और औजार खरीदने में मेरी मदद कर सहायता भी की।”
निधन:-
दशरथ मांझी पित्ताशय के कैंसर से पीड़ित थे और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संसथान(AIIMS), नयी दिल्ली में 17 अगस्त, 2007 को 78 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। बिहार सरकार द्वारा इनका अंतिम संस्कार किया गया।
सम्मान:-
- पहाड़ को काट कर बीच से सड़क बनाने जैसे अति सराहनीय काम करने के लिए ही उन्हें “माउंटेन मैन” के नाम से जाना जाता है।
- उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्ताव रखा।
- बिहार सरकार के द्वारा गहलौर जहाँ उनका जन्मा हुआ था, में 3 किलोमीटर लम्बी सड़क बनाने और हॉस्पिटल बनवाने का फैसला भी लिया गया।
दशरथ मांझी के जीवन में कठिनाई तो बहुत आयी लेकिन उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प को पूरा करने के लिए पुरे जी जान से सकारात्मक सोच के साथ लग गए और 22 वर्ष बाद कामयाबी भी मिली। इसलिए हम सभी को अपने जीवन सिर्फ सकारात्मक होकर ही किसी कार्य को करने का प्रयत्न करना चाहिए जिससे निश्चित रूप से हमे सफलता मिलेगी। अब आप लोग निश्चित ही समझ गए होंगे कि सकारात्मक सोच की शक्ति क्या होती है और इसके साथ कोई भी कार्य प्रारम्भ करने और पूरी दृढ़ संकल्प के साथ जीवन में लग जाएँ तो आशम्भव काम भी सम्भव हो जाती है।