जीवन परिचय:-

आज हमारे देश के महान क्रन्तिकारी चंद्र शेखर आज़ाद की जयंती है|चंद्र शेखर आज़ाद हमारे देश की आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे जिनके नाम से ही अंग्रेजी कांपा करते थे| चंद्र शेखर आज़ाद एक बहादुर देशभक्त थे जिन्होंने निर्भीक होकर देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दिया|आइये आज उनके जयंती दिवस पर उनके बारे में कुछ रोचक जानकारियां जानते हैं और उनके आदर्शों को अपने जीवन में लाने की कौशिक करते हैं जिनसे हम भी उनकी ही तरह निर्भीक, और बुराई से लड़ाई में सच का हमेशा साथ दें|चंद्र शेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के एक गांव भाबरा (अब चंद्रशेखर आज़ादनगर) में हुआ था| बचपन से ही उनमे देशभक्ति की भावना ओत-प्रोत थी, 14 साल की उम्र 1921 में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे|बेखौफ अंदाज के लिए जाने जाने वाली आज़ाद की विचारधारा उस वक़्त अचानक बदलाव आया जब महात्मा गांधीजी के द्वारा 1922 में अचानक असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया गया और वे क्रन्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन के सक्रिय सदस्य गये|
चंद्र शेखर आज़ाद के जीवन से जुडी कुछ खास बातें:-
आइये आगे देखते हैं ,चंद्र शेखर आज़ाद के जीवन से जुडी कुछ खास बातें, हम बात करतें हैं कैसे उन्होंने देश के लिए अपना योगदान दिया और क्या-क्या किये देश के लिए :-
1. पहली बार कब और क्यों जेल गये…?
जब देश में 1919 में हुए जलियांवाला बाग़ कांड से देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया, उस समय आज़ाद पढाई कर रहे थे| जब गांधीजी ने सन 1921 में असहयोग आंदोलन छेड़ा तो वह आग बन कर फूट पढ़ी और विद्यालय के बाकि साथियों के साथ चंद्र शेखर आज़ाद भी सडकों पर उतर आये|अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आंदोलन में भाग लेने के लिए वो पहली बार गिरफ्तार हुए और तब उनकी उम्र महज 16 साल की थी| कोर्ट की पेशी में जब मजिस्ट्रेट ने उनसे नाम, बाप का नाम, और पता पूछा तो जवाब में उन्होंने कहा नाम आज़ाद है, पिता का नाम स्वतंत्र और पता जेल है|चंद्रशेखर आज़ाद के यह जवाब सुनकर मजिस्ट्रेट चौंक गया और उसने उन्हें 15 दिन की जेल और कोड़े मरने की सजा सुनाई|जेल से बहार आते ही लोगो ने आज़ाद का स्वागत फूलों और मालाओं के साथ किया और इसके बाद से ही लोग उन्हें आज़ाद के नाम से जानने लगे|
2. अचूक निशानेबाज:-
चंद्रशेखर आज़ाद में एक सीमित समय के लिए झाँसी को अपना गढ़ बना लिया था| झाँसी से 15 किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वो अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे|चूँकि उनकी निशानेबाजी अचूक थी इसलिए वो अपने दूसरे क्रन्तिकारी साथियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पास के धिमारपुर गांव में पंडित हरिशंकर ब्रम्हचारी के नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी किया करते थे और स्थानीय लोगो के बीच इस नाम से बहुत लोकप्रिय हो चुके थे, वहां रहते हुए उन्होंने ने गाड़ी भी चलना सीख लिया था|
3. कांग्रेस से क्यों अलग हुए…?
जब असहयोग आंदोलन के दौरान फरवरी, 1922 में चौरी चौरा घटना के बाद गांधीजी ने बिना किसी से पूछे अचानक असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया उसके बाद देश के बाकि नवयुवकों की तरह आज़ाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया और तब पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेशचन्द्र चटर्जी ने १९२४ में उत्तर भारत से सभी क्रांतिकारियों को लेकर एक दल हिंदुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ(एचआरए) का गठन किये जिसमे आज़ाद भी शामिल हो गये|
4. काकोरी कांड (खजाने की लूट):-
अपने लोगो से न लूटकर अंग्रेजो के लिए खजाने लूट कर धन की व्यवस्था करना इस संघ(एचआरए) की पहली नीति में शामिल था|इसी नीति के अनुसार में ट्रैन लूटी गयी| आज़ाद के साथ 10 क्रांतिकारियों(जिसमे भगत सिंह भी शामिल थे) के साथ अंग्रेजों के खजाने से भरी ट्रेन को 9 अगस्त 1925 काकोरी में अंजाम देने की योजना बनाकर अंजाम दिया|इसके बाद अंग्रेज खून लेने और देने पर उतारू हो गए|इसी के तहत ,जिन लोगों ने ट्रेन को लूटा था उनको गोरे सिपाहियों ने खोज-खोज कर मारना शुरू किया, 5 उनकी पकड़ में आ गए. गोरों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया. आजाद भेस बदलने में माहिर थे. वो एक बार फिर से अंग्रेजों से बच निकले और नंगे पैर विंध्या के जंगलों और पहाड़ों के रास्ते चलकर वो जा पहुंचे कानपुर. जहां उन्होंने एक नई क्रांति की शुरुआत की. इस काम में भगत सिंह भी शामिल थे|
5. लाला लाजपतराय का बदला:-
जब लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 में हुई, इन्हे पंजाब केसरी के नाम से बन्हि जाना जाता है|इन्होने ने ही पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना किया था|ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे।30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ विद्रोह प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौराम अंग्रेजो द्वारा लाठी चार्ज में वो बुरी तरह से घायल हो गए और उन्होंने कहा “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।” 17 नवम्बर 1928 में बुरी तरह घायल होने की वजह से देहांत हो गया|
अपने प्रिय नेता लालाजी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो गया और चंद्र शेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालजी की मृत्यु का बदला लेने की योजना बनायीं, ठीक एक महीने बाद 17 दिसम्बर 1928 को चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह और राजगुरु ने पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया, जैसे ही जे.पी. सांडर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साईकिल से निकला राजगुरु ने पहली गोली दाग दी जो सांडर्स के माथे पर लगी और वह निचे गिर पढ़ा|फिर भगत सिंह ने 5-6 गोलियां दाग कर उसे बिलकुल ठंडा कर दिया|इसके बाद जब सांडर्स के अंगरक्षक ने पीछा किये तो चद्रशेखर आज़ाद ने उसे ढेर कर दिया|लाहौर नगर में जगह–जगह परचे चिपका दिए गए कि लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया। समस्त भारत में क्रान्तिकारियों के इस क़दम को सराहा गया।
6. चरम सक्रियता:-
भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु की फाँसी रुकवाने के लिए आज़ाद ने दुर्गा भाभी को गांधीजी के पास भेजा जहाँ से उन्हें कोरा जवाब दे दिया गया था। आज़ाद ने अपने बलबूते पर झाँसी और कानपुर में अपने अड्डे बना लिये थे। झाँसी में मास्टर रुद्र नारायण, सदाशिव मलकापुरकर, भगवानदास माहौर तथा विश्वनाथ वैशम्पायन थे जबकि कानपुर में पण्डित शालिग्राम शुक्ल सक्रिय थे। शालिग्राम शुक्ल को १ दिसम्बर १९३० को पुलिस ने आज़ाद से एक पार्क में मिलने जाते वक्त शहीद कर दिया था।
7. बलिदान:-
चन्द्रशेखर आज़ाद ने मृत्यु दण्ड पाये तीनों प्रमुख क्रान्तिकारियों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया। वे उत्तर प्रदेश की हरदोई जेल में जाकर गणेशशंकर विद्यार्थी से मिले। विद्यार्थी से परामर्श कर वे इलाहाबाद गये और २० फरवरी को जवाहरलाल नेहरू से उनके निवास आनन्द भवन में भेंट की। आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र- कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें! 27 फरवरी 1931 अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे को अंग्रेजी पुलिस ने इलाहाबाद आजाद को चारों तरफ से घेर लिया। अंग्रेजों की कई टीमें पार्क में आ गई। आजाद ने 20 मिनट तक पुलिस वालों से अकेले ही लौहा लिया। इस दौरान उन्होंने अपने साथियों को वहां से सुरक्षित बाहर भी निकाल दिया। जब उनके पास बस एक गोली बची तो उन्होंने उससे खुद को गोली मार ली लेकिन जीते जी अंग्रेजो के हाथ नहीं आये|
“आजाद ने कहा था कि वह आजाद हैं और आजाद ही रहेंगे। वह कहते थे कि उन्हें अंग्रेजी सरकार जिंदा रहते कभी पकड़ नहीं सकती और न ही गोली मार सकती है। क्योंकि उन्होंने संकल्प लिया था कि उन्हें कभी भी अंग्रेजी पुलिस जिंदा नहीं पकड़ सकती।“ — शहीद चंद्रशेखर आज़ाद
मुझे आशा है कि इस लेख को ध्यान पूर्वक पढ़ कर कुछ समय के लिए आज़ाद के दौर में चले गये रहें होंगे और आज़ाद के बारे में बहुत सी जानकारियां भी पढ़े, ऐसे थे हमारे आज़ाद | इसके बारे की कुछ सुझाव है तो आप कमेंट बॉक्स में कमेंट करके या मुझे मेल करके जरूर दीजिये… धन्यवाद्