मुर्ख साधु और ठग शिष्य पंचतंत्र की कहानी | An Ancient Ethics Story From Panchtantra

किसी गांव में एक मंदिर था जहाँ एक देवदत्त शर्मा नाम का एक प्रतिष्ठित साधु निवास करता था। सभी लोग उनका सम्मान करते थे। गांव के लोग प्रेम से उन्हें विभिन्न प्रकार के धन, वस्त्र, खाद्य सामग्री और अन्य कई चीजें दिया करते थे चूंकि साधु से सभी आदर भाव रखते थे इसलिए साधु भी सबसे प्रेम से मिला करते और विचार-विमर्श किया करते थे। दिए गए को बेच कर उस साधु ने बहुत सा धन एकत्र कर रखा था।

सभी साधु के प्रति आदर-भाव रखते थे एयर साधु भी सबसे प्रेम-भाव भी रखता था लेकिन उसमे एक चीज की आदत ख़राब थी वो है विश्वास। साधु को किसी के ऊपर तनिक भी विश्वास ना था। वह हमेशा अपने धन की सुरक्षा के लिए चिंता करते रहता था। वह धन को एक पोटली में बांध कर हमेशा अपने साथ ही रखता था और कहीं जाने पर साथ लेकर ही चलता था।

उसी गांव में एक बहुत चालाक ठग रहता था जिसकी नजर बहुत दिनों से साधु के धन पर टिकी हुई थी। ठग हमेशा इस मौके की तलाश में रहता था कि कब उसे मौका मिले और वह साधु का धन साफ़ कर जाये। लेकिन साधु अपने उस धन कि पतली को अपने से कभी अलग नहीं होने देता था।

आखिर में ठग ने एक योजना बना कर साधु के पास छात्र का वेश धारण कर पांच गया और उसने साधु से आग्रह किया कि वो उनसे ज्ञान प्राप्त करना चाहता है इलसिए वो उसे अपना शिष्य बना ले। बहुत आग्रह करने के बाद साधु मान गया और उन्होंने ठग को अपना शिष्य बनाना सवीकार कर लिया। इस तरह से वह ठग साधु के साथ मंदिर में ही निवास करने लगा। वह ठग साधु के के लिए सभी नित्यकर्म में कार्य जैसे मंदिर की साफ़-सफाई, पूजा की तैयारी, फूल लाना और पूजा के सामग्री की व्यवस्था करने और अन्य सभी कार्य करता।

ठग का अपने प्रति इतना समर्पण=भाव देख कर साधु प्रसन्न हो गए और वह साधु का विश्वासपात्र बन गया। एक दिन साधु को पास के एक गांव में धार्मिक अनुष्ठान के लिए आमंत्रित किया गया। रास्ते में एक नदी पड़ी और फिर साधु ने उसमे स्नान करने की इच्छा जताई। इसके पश्चात् उसने धन से भरे पोटली को एक चादर के अंदर रख कर उसे नदी किनारे रख दिया और अपने शिष्य से इसकी रखवाली करने को कहा। इसके बाद साधु नदी में नहाने चल गया। ना जाने कितने दिनों से वह ठग इस समय का इंतजार कर रहा था और जैसे ही साधु ने नदी में डुबकी लगाया, ठग धन से भरा वो बेग लेकर रफ्फू-चक्कर हो गया।

शिक्षा:-

दोस्तों यह कहानी भले छोटी सी है लेकिन इससे हमें ये शिक्षा मिलती है कि किसी पर ऐसे उसकी चिकनी-चुपड़ी बाटने में आकर विश्वास करना नहीं चाहिए, इससे हमारा ही नुकसान होता है।यदि किसी को विश्वास पात्र बना रहे हो तो उसके बारे में यथोचित जानकारी होने के बाद ही विश्वासपात्र बनाने कि सोचें, नहीं तो उस साध के जैसे ही हमें हानि उठानी पद सकती है।

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