Quotes Of Pandit Deen Dayal Upadhyay In Hindi | एकात्म मानववाद के प्रणेता – पं दीनदयाल उपाध्याय के अनमोल विचार हिंदी में

परिचय

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर, 1916 में नगला चन्द्रभवन (मथुरा), उत्तरप्रदेश में हुआ था। वे एक महान दार्शनिक, अर्थशाष्त्री, इतिहासकार, पत्रकार और समाजशास्त्री थे। वे भारतीय जबसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के चिंतक और संगठनकर्ता के रूप में भी कार्य किया। भारत के सनातन विचार धारा को आधुनिक भारत के समक्ष लाने के लिए बहुत कार्य किया और उसे युगानुकूल प्रस्तुत भी किया। पंडित जी ने ही सर्वप्रथम भारत देश में “एकात्म मानववाद(Integral Humanism)” नमक विचार धारा दी। पंडित जी एक समावेशित विचार धारा के समर्थन को जोर देते थे उनके समर्थक थे जो एक मजबूत, आत्मनिर्भर और सशक्त भारत चाहते थे। उनका निधन 11 फरवरी, 1968 को उत्तरप्रदेश के मुगलसराय में हुआ था।

दोस्तों चलिए आज हम आपके लिए लाये हैं एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय के महान अनमोल प्रेरक विचार जिसे पढ़कर और जीवन में लागु कर स्वयं को भी उनके एकात्म मानववाद के पथ पर आगे ले जा सकते हैं।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के महान अनमोल प्रेरक विचार

  • भारतीय परंपरा ही मानव को “एकात्म(Integral)” बनाती है, एकात्म का अर्थ है जिसको बांटा नहीं जा सकता। न बांटी जा सकने वाले इकाई को ही “एकात्म” कहते हैं।
  • भारत माता ही हमारी राष्ट्रीयता का आधार है, केवल भारत ही नहीं, अगर माता शब्द को हटा दीजिये तो भारत सिर्फ और सिर्फ जमीन का एक टुकड़ा मात्रा बनकर रहा जायेगा।
  • नैतिकता के सिद्धांतों की खोज की जाती है, ना कि कोई एक व्यक्ति इसे बनाता है।
  • व्यक्ति को वोट दें, बटुए को नहीं, पार्टी को वोट दें, व्यक्ति को नहीं, सिंद्धांत को वोट दें, पार्टी को नहीं।
  • भारत में नैतिकता के सिद्धांतों को जीवन के नियम के रूप में मन जाता है – यानि धर्म के रूप में।
  • हमें संस्कृति और सभ्यता तब प्राप्त होते हैं जब हम स्वाभाव को धर्म के सिद्धांतों के अनुसार बदलते हैं।
  • यह सबसे जरुरी है कि हम “हमारी राष्ट्रीय पहचान” के बारे में सोचतें हैं, जिसके बिना आज़ादी का कोई अर्थ नहीं है।
  • मुसलमान हमारे शरीर का शरीर और खून का खून है।
  • असंयमित व्यवहार में हमारी शक्ति नहीं बल्कि संयित कार्यवाही में निहित है।
  • भारत के मुलभुत समस्याओं का प्रमुख कारण अपने राष्ट्रिय पहचान कि उपेक्षा करने के कारण है।
  • राजनीति में लोगों के विश्वास को अवसरवादिता ने हिला दिया है।
  • हमारे देश कि राजनीति की बागडोर सिद्धांतहिन् अवसरवादी लोगों ने संभाल रखा है।
  • जब अंग्रेज हम पर राज कर रहे थे, तब हम उनके विरोध में गर्व का अनुभव किया करते थे, लेकिन ये हैरत की बात है कि अब जब अंग्रेज चले गए हैं, पश्चिमीकरण ही प्रगति का पर्याय बन गया है।
  • पश्चिमी विज्ञान और पश्चिमी जीवन शैली दो अलग-अलग चीजें हैं, चूँकि पश्चिमी विज्ञान सार्वभौमिक है और हमे आगे बढ़ने के लिए इस जरूर अपनाना चाहिए लेकिन पश्चिमी जीवन शैली और मूल्यों के सन्दर्भ में यह बिलकुल भी सच नहीं है।
  • धर्म के पतन का सबसे बड़ा कारण राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों द्वारा राज्य का अधिग्रहण करने से हैं।
  • उसे ख़ारिज नहीं किया जा सकता जो हमने पिछले 1000 सालों में जबरदस्ती या अपनी इच्छा से, चाहे जो कुछ भी हमने ग्रहण किया है।
  • मानवीय ज्ञान हमारी आत्म संपत्ति है।
  • आज़ादी का मतलब तभी सार्थक हो सकता है जब यह हमारी संस्कृति कि अभिव्यक्ति का साधन बन जाये।
  • अब हम अपने भारतीय संस्कृति के सिद्धांतों के बारे में सोचें यह मानवीय और राष्ट्रिय दोनों तरह से आवश्यक हो गया है।
  • जीवन को एक एकीकृत रूप में देखना ही भारतीय संस्कृति की मुलभुत विशेषता है।
  • हमारे जीवन में विविधता और बहुलता है लेकिन हमने हमेशा ही उनके पीछे छिपी हुई एकता को खोजने का प्रयास किया है।
  • हेगेल ने थीसिस, एंटी थीसिस और संश्लेषण के सिद्धांतों को आगे रखा, कार्ल मार्क्स ने इस सिद्धांत को एक आधार के रूप में इस्तमाल किया और इतिहास और अर्थशास्त्र के अपने विश्लेषण को प्रस्तुत किया, डार्विन ने योग्यतन की उत्तरजीविता के सिद्धांत को जीवन का एक मात्रा आधार मन, लेकिन हमने देश में सभी जीवों की मुलभुत एकात्म देखा है।
  • बीज की सिर्फ एक इकाई विभिन्न रूपों में प्रकट होती है जैसे जड़ें, तना, शाखाएं, पत्तियां, फूल और फल, इन सबके रंग और गन अलग-अलग होते हैं फिर भी बीज के द्वारा हम इन सबके एकत्व के रिश्ते को पहचान लेते हैं।
  • धर्म के मौलिक सिद्धांत अनंत और सार्वभौमिक हैं लेकिन उनके कार्यान्वयन का समय और स्थान परिस्थितियों के अनुसार भिन्न हो सकती है।
  • धर्म के लिए सबसे निकटतम समान अंग्रेजी शब्द “जन्मजात कानून” हो सकता है लेकिन यह भी धर्म कर पूर्ण अर्थ व्यक्त नहीं करता है, चूँकि धर्म सबमे सर्वोच्च है इसलिये हमारे राज्य के लिए आदर्श “धर्म का राज्य” होना चाहिए।
  • हमारी शक्ति अनर्गल व्यवहार में व्यय न हो बल्कि अच्छी तरह विनियमित कार्यवाही में निहित होनी चाहिए।
  • भारतीय संस्कृति की विचार धरा में विविधता में एकता और विभिन्न रूपों में एकता की अभिव्यक्ति रची-बसी हुई है।
  • संघर्ष सांस्कृतिक स्वाभाव का एक सकते नहीं, बल्कि यह उसके गिरावट का एक लक्षण है।
  • एक ओर क्रोध और लालच तो दूसरी ओर प्रेम और बलिदान मानव प्रकृति में निहित दो प्रवृत्तियां है।
  • धर्म के लिए अंग्रेजी शब्द का Religion  सही शब्द नहीं है।
  • धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की लालसा व्यक्ति में जन्मगत होता है और इनमे संतुष्टि एकीकृत रूप से भारतीय संस्कृति का सार है।
  • जब राज्य में समस्त शक्तियां राजनीतिक और आर्थिक दोनों तो इसके परिणामस्वरूप धर्म में गिरावट होता है।
  • रिलिजन का अर्थ एक पथ या एक संप्रदाय है और इसका मलतब धर्म तो कटाई नहीं हो सकता।
  • समाज को बनाये रखने के जीवन के सभी पहलुओं से सम्बंधित धर्म एक बहुत व्यापक अवधारणा है।

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