Roopkund Lake A Mysterious Lake of Human Skeltons
Friends we all have different hobbies but many peoples hobbies is to explore and know about the wonderful and astonishing places and so that today I am writing about the Mysterious Lake – Roopkund Lake A Mysterious Lake of Human Skeltons.
दोस्तों पिछले बार हमने एक कुंड के बार में बात की थी भीमकुण्ड जो अपने आप में एक अद्भुत कुंड है जो अपने साथ कई आश्चर्यचकित कर देने वाली चीजें लिए हुए है, जो कभी सूखता ही नहीं और जिसका पानी का स्रोत भी नहीं पता और जिसका राज आज तक कोई समझ ही नहीं पाया।
इसी प्रकार हम आज ऐसे कुंड के बारे में जानने वाले हैं जो अपने आप में रहस्य के साथ-साथ अजीबोगरीब और आश्चर्य से भरी हुयी है।भारत के कई जगह ऐसे झीलें हैं जहाँ रोज हजारों पर्यटक घूमने के लिए जाते हैं जैसे पैंगोंग झील , दाल झील और कैलाश मानसरोवर झील।लेकिन कुछ झीलें भारत में ऐसे भी हैं जो वैज्ञानिकों के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी कौतुहल और रहस्य का विषय बना हुआ है।जैसे महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में स्थित “लोनार झील” जो एक खारे पानी का झील है और इसका निर्माण भी उल्कापिंड की धरती पे टकराने के कारण हुयी है।इस झील का पानी कभी ग़ुलाबी हप जाता है तो कभी हरे रंग का।
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कुछ इसी तरह का एक रहस्यमयी झील भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है जिसका नाम है “रूपकुंड झील”।यहाँ पर 10वीं शताब्दी के कई नर कंकाल आज भी यहाँ मौजूद है। तो दोस्तों आइये अब इस झील के बारे में और करीब से जानते हैं आखिर क्यों इस झील को कंकालों का झील(Lake Of Skelton’s) कहा जाता है।
रूपकुण्ड झील – कंकालों का झील / Roopkund Lake – A Lake Of Skelton’s
रूपकुंड समुद्र की सतह से करीब 5028 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जो करीब 6 महीने तक बर्फ से ढंकी हुयी होती है। भारत के उत्तराखंड राज्य के चामोली में स्थित है यह रहस्यमयी झील । हिमालय परबत पर होने की वजह से इस झील के आसपास की जगह में वीरानी होती है। यह झील चरों तरफ से पहाड़ों से गिरी हुयी है।
दोस्तों अब यहाँ पर सोचने वाली बात यह है कि इसे कंकालों का झील क्यों कहा जाता है यहाँ पर इतने सारे मानवीय अवशेष आये कहा से हैं?इस झील में करीब 200 से अधिक कंकाल आज भी मौजूद है। इस झील में मिले कंकालों को देख कर शोधकर्ताओं ने अलग-अलग अनुमान लगा चुके हैं।
रूपकुंड का रहस्य / A Mystery Of Roopkund
रूपकुण्ड के बारे में अधिक जानने के लिए सबसे पहले साल 1942 में नंदा देवी के गेम रिज़र्व रेंजर(Game Reserve Ranger) एच. के. मधवाल(H.L. Madhwal) इस झील में गए और इसके बारे में शोध किये। कई शोधकर्ताओं का मानना है कि यह हिमालय क्षेत्र का करीब 400 साल प्राचीन कब्र है।यहाँ मिले कंकाल पूर्वी भूमध्य सागर के लोगों के हो सकते हैं।
कई शोधकर्ताओं का कहना है कि यहाँ मिले हुए कंकाल दो अलग-अलग घटनाओं में मारे गए लोगों के हैं जो किसी तीर्थयात्री दल के हो सकते हैं या फिर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मारे गए सैनिकों के। कई जानकारों का मानना है कि तिब्बत के युद्ध के समय लौटते समय ख़राब मौसम के कारण कुछ सैनिक ख़राब मौसम की चपेट में आकर मारे गए थे। इस कंकाल से जुडी हुयी एक और कहानी है कि एक बार राजा अपने परिवार और सैनिकों के साथ यहाँ से गुजर रहे थे लेकिन ख़राब मौसम और बर्फीली आंधी में फंस कर सभी मारे गए थे।
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1. नंदा देवी का प्रकोप / Curse Of Nanda Devi
लोगों का मानना है कि हिमालय पर्वत पर नंदा देवी का एक मंदिर है जो हिन्दुओं के श्रद्धा का एक स्थान है। जहाँ पर हर 12 साल में “राज जाट” नाम का उत्सव एक बार मनाया जाता हैं जिसमे शामिल होने के लिए बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं।एक बार की बात है कन्नौज के राजा जसधवल अपनी गर्भवती पत्नी के साथ नंदा देवी दर्शन के लिए निकले, उनके साथ उनकी राज नर्तकी और सैनिक भी थे।सभी लोगों के मना करने के बाद भी नाच-गाना और मनोरंजन करते हुए जा रहे थे।
राजा मंदिर दर्शन के लिए जाते हुए सारे नियम तोड़ दिए थे, राजा के इस तरह नियम तोड़ने के कारन नंदा देवी का प्रकोप उन पर पड़ा और रास्ते में बर्फीली तूफान का सामना उन्हें करना पड़ा और फिर इस बर्फीली तूफ़ान में राजा, उनकी रानी के साथ-साथ सभी की मृत्यु हो गयी।
2. जापानी सैनिकों के कंकाल / Skeltons Of Japani Army
प्रारम्भ के इसके बारे में यह माना जाता रहा है कि यह ये सभी कंकाल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहाँ से गुजरने वाले जापानी सैनिकों के हैं।जब जापानी सैनिक यहाँ से द्वितीय विश्व युद्ध के दौराम भारत पर हमला करने के लिए यहाँ से गुजर रहे थे तब मौसम ख़राब होने और भारी बर्फ़बारी और बर्फीली आंधी में फंसकर उन सभी कि मृत्यु हो गयी। उस समय भारत में अंग्रेजों का शाशन था।इस सच को जानने के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक टीम बना कर जांच के लिए यहाँ भेजा जिसके बाद जांच में पता चला कि ये जापानी सैनिकों के नहीं हैं क्यूंकि ये कंकाल सैंकड़ों साल पुराने थे।
कंकालों के रहस्य से पर्दा कैसे उठा / How the Mystery of Skeletons was Uncovered
वैज्ञानिकों द्वारा रिसर्च में पता चला कि रूपकुंड में 10वीं शताब्दी के 200 से अधिक कंकाल मिले हैं वो सभी भारतीय आदिवासियों के हैं। इस सभी आदिवासियों की मृत्यु भारी बर्फीली आंधी और बर्फ़बारी के कारण हुयी है।
इसके बाद भी वैज्ञानिकों द्वारा इस पर आगे और शोध किया गया।इसी कड़ी में साल 2018 में हारने एट अल (Harney At Al) द्वारा अलग-अलग टीम बना कर जांच किया गया जिसमे पता चला की यहाँ मिले कंकालों में 2 समूह (2 Groups) थे।पहले समूह(First Group) में मिलने वाले कंकाल एक ही परिवार के थे वही दूसरे समूह (Second Group) में मिलने वाले लोग थोड़े कम कद वाले थे और थोड़े अलग थे।इसमें पता चला कि इनकी मृत्यु किसी लड़ाई या हथियार से नहीं बल्कि भारी ओलावृष्टि (Hailstorm) के कारण हुयी थी।
इन कंकालों के कारण रूपकुंड झील पर्यटकों के लिए आकर्षण कर केंद्र बना गया है, जहाँ हजारों पर्यटक रूपकुंड झील के साथ-साथ इन कंकालों को देखने को भी देखने आते हैं। पहाड़ पर होने के वजह से रूपकुंड झील ट्रेकर्स के लिए भी बहुत ही उपयुक्त जगह है।
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रूपकुंड झील के बारे में अन्य जानकारियां / Other Information About Roopkund Lake
यहाँ मिले कंकालों के साथ-साथ और भी कई चीजें मिले हैं जैसे घोड़े की हड्डियां, उन के बने बूट, लकड़ी के बने बर्तन इत्यादि।
1. जो भी कोई नंदा देवी मंदिर के दर्शन के लिए वहां जाता है, वो जरूर रूपकुंड झील जाता है,इसलिए अगर कभी आप भी गए नंदा देवी मंदिर तो एक बार वहां जरूर जाएँ।
2. रेडियो कार्बन विधि द्वारा पता लगाने पर यहाँ मिलने वाले कंकाल करीब 400 साल पुराने हैं।
3. रूपकुंड झील अब भारत के आधिकारिक इको-टूरिज्म गंतव्य (Eco-Tourism Destination) का एक हिस्सा है, और इस स्थल से किसी भी चीज की चोरी या चुपचाप अपने साथ ले जाने की कोशिश करना दंडनीय अपराध (Punishable Offence)है।
4. हैदराबाद में अनुवंशिकीविदों द्वारा कंकालों के डीएनए(DNA Test) परिक्षण किये जाने पर पता चला है कि ये कंकाल 1200 साल प्राचीन हैं. और 10वीं शताब्दी के हैं।
5. रूपकुंड झील साल में 6 महीने तक बर्फ से ढंका रहता है और गर्मी के महीने में जब बर्फ पिघलती है तो एक महीने के दौरान इसके पानी में कंकाल स्पष्ट रूप से दिखाए पड़ते हैं।
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